Tuesday, February 13, 2018

ऐसा क्यों होता है ?

ऐसा क्यों होता है ?

हम पांच मित्रों का नित्य का नियम है कि प्रातः ६ बजे कैंट के वाकिंग प्लाज़ा में प्रातः भ्रमण के लिए जाते हैं और लगभग दो किलोमीटर के उपरान्त एक शेल्टर में लगभग आधा घंटा बैठते हैं और वहां पर अन्य मित्र भी होते हैं जो कि नित्य चर्चाओं में भाग लेते हैं.इन्ही मित्रों में एक श्री गुप्ता जी जो कि लगभग ८० वर्ष के हैं वह भी नित्य आते थे .एक दिन जब हम लोग शेल्टर में पहुंचे तो देखा कि गुप्ताजी फूट फूट कर रो रहे हैं ,बहुत देर तक पूछने पर उन्होंने बताया कि उनके कर्नल बेटे जिनके साथ वो रहते हैं उसने उन्हें घर से निकल जाने के लिए कहा है .इस पर मैंने उन्हें ढांडस बंधाते हुए कहा कि आप कहीं नहीं जायेगे ,आप अपना सामान उठाइए और मेरे घर चलिए ,मैं आपकी अपने पिता के समान सेवा करूंगा .मैं लगभग दो घटे में आपके घर पर कार लेकर आऊँगा ,अपना सामान तैयार रखिये .यह सुन कर वो और भी जोर जोर से रोने लगे और कहने लगे कि मेरा सगा बेटा मुझे घर से निकाल रहा है और तुम मेरे बेटे न होते हुए भी अपने घर ले जा रहे हो ? जब उन्हें विश्वास हो गया कि मैं उन्हें झूठी सांत्वना नहीं दे रहा हूँ तो उन्हों कहा कि ठीक है मैं सामान बंधता हूँ , मेरे फ़ोन का इंतज़ार करना .लगभग 12 बजे उनका फ़ोन आया कि सब ठीक हो गया है,आने की जरूरत नहीं है .दुसरे दिन प्रातः हमारी उत्सुकता को भांपते हुए उन्होंने बताया कि मैंने अपने बेटे से कल कह दिया कि मैं अपने दुसरे बेटे (मेरा नाम लेकर )के पास जा रहा हूँ .तभी उसे लगा कि उसकी बहुत बदनामी होगी इस लिए उसने कहा ,चलो ठीक है आप मेरे साथ रह सकते हो ,परन्तु इसकी कीमत देनी पड़ेगी , पूछने पर बताया कि छः लाख रूपये . मैंने छः लाख का चेक काट कर दे दिया तब जाकर उसे तसल्ली हुई . हम सब लोगों को बहुत जोर का झटका लगा कि क्या एक बाप जिसने अपनी जवानी इन बच्चों के लालन पालन करने ,शिक्षित करने में, कितनी इच्छायें मारी होंगी, कितनी तकलीफें झेली होंगी, कितनें सपनें अधूरे रह गए होंगे ? उसे अपने बुढ़ापे में इस प्रकार का पारितोषिक मिलने की कभी आशा भी की होती है ? क्या इसी दिन के लिए इंसान बेटा मांगता है. कुछ दिनों के बाद ,यह पता चला कि उसी बेटे ने उनको इतना परेशान किया कि उन्हें मजबूर हो कर दिल्ली में एक वृद्ध आश्रम में अपने रहने का प्रबंध करवा कर वहां शिफ्ट हो गए .आजकल गुप्ताजी उसी आश्रम में रहते हैं . एक बार दिल्ली जाने पर उनसे मिलने का मौका मिला ,मिलकर खुश भी हुए और फिर रोने लगे और कहने लगे कि मुझे अपने किस कर्म की सजा मिल रही है .पहले मेरी पत्नी मुझे छोड़ कर ऊपर चली गयी और अब बच्चों ने भी मेरा त्याग कर दिया है.उनकी दशा देख कर आँखों में आंसू भर आये और यह कविता याद आ गयी !

पत्थरों के शहर में कच्चे मकान कौन रखता है..
आजकल हवा के लिए रोशनदान कौन रखता है..
अपने घर की कलह से फुरसत मिले..तो सुने..
आजकल पराई दीवार पर कान कौन रखता है..
जहां, जब, जिसका, जी चाहा थूक दिया..
आजकल हाथों में पीकदान कौन रखता है..
खुद ही पंख लगाकर उड़ा देते हैं चिड़ियों को..
आजकल परिंदों मे जान कौन रखता है..
हर चीज मुहैया है मेरे शहर में किश्तों पर..
आजकल हसरतों पर लगाम कौन रखता है..
बहलाकर छोड़ आते है वृद्धाश्रम में मां बाप को..
क्यूँकी आजकल घर में पुराना सामान कौन रखता है..
रवीन्द्र नाथ अरोड़ा

Tuesday, October 20, 2015

प्रतिकार

प्रतिकार
एक दिन कार्यालय से वापस घर आया तो पत्नी किसी स्त्री से गपिया रही थी ,मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा तो बताया कि पड़ोस में नए किरायेदार आये हैं उनकी पत्नी हैं.एक दिन वही पड़ोसन मेरी पत्नी के पास बैठी हुई रो रही थी .उसके जाने के पश्चात् मैंने कारण पूछा ,तो पत्नी ने बताया कि इस का पति रोज दारू पीकर इसको इसके बच्चों के सामने ही पीटता है. मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा “क्या आप कुछ कर सकते हो ?“ मैंने पत्नी से कहा कि मैं सहानुभूति के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकता .और मैंने पत्नी से भी कहा कि किसी के व्यक्तिगत पचड़ों में पड़ने की जरूरत नहीं है .पड़ोसन के समाचार पत्नी के द्वारा मिलते रहते थे ,उसकी स्थिति बद से बत्तर होती जा रही थी .एक दिन तो हद ही हो गयी ,पड़ोसन अपने घर से जोर जोर से “बचाओ बचाओ “ चीखती हुई भाग कर हमारे घर आ गयी और रो रो कर अपने पति से बचाने की गुहार लगाने लगी . मैंने गौर से देखा तो उसका सर फटा हुआ था और झर झर खून बह रहा था .तुरंत फर्स्ट ऐड बॉक्स निकाल कर उसकी पट्टी की और विचार करने लगा कि ऐसी स्थिति में क्या किया जा सकता है?
मेरा मन अंदर से कचोट रहा था और अपने आप को कभी भी इतना कमजोर नहीं अनुभव किया था .रोज टीवी पर सामाजिक सरोकार से सम्बन्धित प्रचार देखता था .एक अधिवक्ता मित्र से सलाह ली ,उसने बताया कि फैमिली कोर्ट में एक मजिस्ट्रेट उनकी जान पहचान की है ,उनसे मदद मांगी जा सकती है ,मैंने उनसे संपर्क किया और उन्होंने तुरंत आवश्यक सहायता का आश्वासन दिया .इस बीच मैंने आस पड़ोस की सभी महिलाओं को एकत्र कर के उनको पडोसी के घर पर ले गया और घायल पड़ोसन को भी वहीँ बुला लिया .अब पडोसी बहुत ही लज्जाजनक स्थिति में नजर आने लगे .उनको , पडोसी महिलाओं ने ऐसी ऐसी गालियों से नवाज़ा कि उनकी बहादुरी की सारी हवा निकल गयी.जब उनको बताया गया कि एक मजिस्ट्रेट को भी बुला रखा है ताकि उनकी पीड़ित पत्नी के बयान रिकॉर्ड किये जा सकें ,उनकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी .अब तो पडोसी महराज माफी पे माफी मांगने लगे .उनसे लिखित में माफीनामा लिखवाने एवं यह् सुनिश्चित करने के पश्चात कि अब वो कभी भी इस प्रकार की जुर्रत नहीं कर सकेंगे , उनको छोड़ दिया गया.
अब पड़ोसन अक्सर हमारे घर मेरी पत्नी के पास आ जाया करती थी और मुझे बहुत ही कृतज्ञता की दृष्टि से देखती .मुझसे अक्सर कहती कि भाई साहब आप की वजह से ही हमारी गृहस्थी बच गयी है.एक दिन मैंने पड़ोसन से उसका नाम पूछा ,उसने बताया “रमा”.नाम सुनकर तो मेरे मस्तिष्क में घंटियाँ बजने लगी और मैं फ्लैशबैक में चला गया .
ये उन दिनों की बात है जब मैं पांचवी कक्षा में ,एक सरकारी स्कूल में पढता था. हमारे एक आर्ट टीचर थे श्री अग्निहोत्री,बड़े ही जालिम किस्म के व्यक्ति थे. होम वर्क ना कर पाने ,या ड्राइंग आदि ठीक से ना बन पाने पर खड़े स्केल से हथेली पर इतनी जोर से मारते थे कि खून छलक जाये. अक्सर उनकी क्लास मैं बंक कर जाया करता था .मेरी आर्ट बहुत ही कमजोर जो थी और उनकी क्लास की याद आते ही पेट में मरोड़ शुरू हो जाते थे. हमारा स्कूल रेलवे स्टेशन के पास में ही स्थित था इस लिए टाइम पास करने की कोई समस्या नहीं थी.स्टेशन के बाहर ही कई मजमे वाले अपने मजमा लगा कर लोगो का मनोरंजन कर रहे होते .उन्ही मजमो की भीड़ में खड़ा हो जाता .कोई शक्ति वर्धक तेल बेच रहा होता ,कोई बन्दर,भालू नचा रहा होता या कोई रस्सी को तोड़ मरोड़ कर उसमे कलम फसा कर पैसे लूट रहा होता . बहुत मजा आता था .
पर बकरे की माँ कब तक खैर मनाती ?आर्ट की क्लास इंटरवल के बाद पांचवे पीरियड में होती थी ,परन्तु एक दिन चौथे पीरियड के टीचर की अनुपस्थिति में श्री अग्निहोत्री जी को क्लास लेने भेज दिया गया .उन्होंने मुझे घूर कर इस प्रकार देखा जैसे शिकारी अपने शिकार को सामने पा कर देखता है .बहुत दिनों के बाद मुलाक़ात हो रही थी .मैं अंदर ही अंदर आने वाली स्थिति को सोच सोच कर पसीने पसीने हो रहा था .खड़ा कर दिया गया .पूछा “कहाँ थे अब तक ?”मैंने बताया कि बुखार आ गया था .उन्होंने ऊपर से नीचे तक घूर के देखा ,उनके देखने के अंदाज से ही बदन में झुरझुरी हो रही थी ,उन्होंने कहा बेटा ये बताओ कि मेरी ही क्लास में आने के लिए तुम्हे बुखार चढ़ता है या किसी और की क्लास में भी ? मैं चुप ! “आओ बेटा ! ज़रा पास आओ “उन्होंने अपना स्केल निकाल लिया था .मेरी हालत ऐसी हो गयी थी कि बस निकर में सुसु निकलने की कसर रह गयी थी . “हथेली खोलो !”उनकी आवाज़ गूँजी .मैंने जैसे ही हथेली खोली ,एक खड़ा स्केल इतनी जोर से पडा कि दर्द के मारे इतनी जोर से चीख निकली कि पूरे स्कूल में उसकी गूँज सुनाई दी .उस आवाज़ को सुन कर या ईश्वर ने उन्हें कुछ सद्बुद्धि दी ,कुछ पता नहीं ,उन्होंने मुझे मारना बंद कर कहा कि मैं तुम्हे नहीं मारूंगा यदि क्लास में एक भी विद्यार्थी यह कह दे कि तुम्हे ना मारा जाये .मैंने पूरी क्लास को बड़ी कातर दृष्टि से देखा ,शायद कोई भगवान का बन्दा खडा हो कर कह दे कि इसे मत मारो .पूरी क्लास में सन्नाटा छाया हुआ था कि अचानक एक लड़की खड़ी हुई और बोली गुरूजी !इसे मत मारिये .और मैंने यह भी नोटिस किया कि वो लड़की भी रो रही थी .मैं उस लड़की की मुझ जैसे नालायक के प्रति सहृदयता देख कर चकित एवं अभिभूत था .
इस घटना ने मुझे बहुत अंदर तक झिंझोड़ दिया था .अब मैं आर्ट की क्लास में प्रतिदिन आने लगा था ,और मेरी आर्ट भी पहले से काफी सुधर गयी थी. मैं उस लड़की  के रूप में एक छोटी बहन को पाकर बहुत खुश था. सदैव क्लास में उसके पास ही बैठता .लेकिन यह ख़ुशी बहुत दिनों तक नहीं रही. अचानक ,उसके पिता का अन्यत्र स्थानातरण होने के कारण उसको स्कूल छोड़ के जाना पड़ा .उस सहृदय लड़की का नाम था “रमा”
उस रमा के छोटे से उपकार ने मेरे मन पर ऐसी छाप छोड़ी कि मैं जीवन भर रमा को मन ही मन ढूँढता रहा और एक दबी सी इच्छा भी बनी हुई थी कि काश मैं उसके इस उपकार का किसी भी प्रकार प्रतिकार कर पाता .
और आज! यह वही रमा थी .पच्चीस वर्षों के बाद ? मेरी आँखों से आंसू रुक नहीं रहे थे, कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि “रमा” जीवन में इस प्रकार मिलेगी और अनजाने में उसके उपकार का प्रतिकार मैं इस प्रकार करूंगा .
हे ईश्वर तेरी लीला निराली है !
-रवीन्द्र नाथ अरोड़ा 

Wednesday, September 23, 2015

पश्चाताप

         पश्चाताप

आज भी कभी कभी अकेले में बैठा होता हूँ तो एक विचार मेरे मस्तिष्क में अक्सर कौंधता रहता है कि क्या मुझसे कोई बहुत बड़ी भूल हो गयी जो आज भी राधू अडसठ वर्ष की आयु में भी कुंवारी बैठी है या फिर उसके भाग्य में विवाह था ही नहीं?
राधू मेरी बहन की अध्यापिका होने के साथ साथ उसकी सहेली भी थी और मेरी कोई बड़ी बहन ना होने के कारण उसको ही बड़ी बहन समझता था. उसकी आयु बढती जा रही थी और अत्यंत प्रयासों के उपरांत भी कोई योग्य वर नहीं मिल रहा था .  उसके माता पिता भी इस विषय को लेकर चिन्तित रहते थे .उन दिनों मैं एक  विश्वविद्यालय में स्थित बैंक शाखा में कार्यरत था .मेरे घर में अक्सर राधू मेरी छोटी बहन के साथ आ जाया करती थी .
एक बार मैं शाम को घर पंहुचा तो देखा राधू और मेरी छोटी बहन घर पर आये हुए हैं .कोई विशेष बात तो थी नहीं.लेकिन थोड़ी देर में मेरी छोटी बहन मेरे पास आयी और कहने लगी कि राधू आपसे कुछ बात करना चाहती है .मैं सोचने लगा कि आज राधू को मुझसे कोई विशेष बात करनी होगी नहीं तो सदा मुझसे सीधी बात करने वाली राधू ,बात करने के लिए किसी और को माध्यम क्यों बना रही है मेरे पूछने पर उसने बताया कि कल वो किसी सेमीनार में दिल्ली गयी हुई थी और जब वो बस से वापस लौट रही थी तो बस में एक हैण्डसम सा युवक उसकी ओर टकटकी लगा कर देख रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे वो मुझसे कुछ बात करना चाह रहा हो लेकिन संकोचवश कुछ कह नहीं पा रहा था . इतने में मेरा गंतव्य आ गया और शायद उसे कहीं आगे जाना था .जैसे ही मैं नीचे उतरी ,उसने मेरे हाथ में एक छोटी सी कागज़ की पर्ची दी और और बस में सवार हो कर चला गया .राधू ने वह पर्ची मेरे हाथ में दी जिसमे लिखा हुआ था “ पता नहीं क्यों मुझे आप का चेहरा बहुत पसंद आ गया है और आपके प्रति अपने आकर्षण को मैं रोक नहीं पा रहा हूँ .संयोगवश मैं कुंवारा हूँ और आपसे विवाह करना चाह रहा हूँ,यदि आप भी कुंवारी हैं एवं आपको मैं भी पसंद हूँ तो मुझे निम्न पते पर संपर्क करें.”उस पर्ची में जो पता लिखा हुआ था वो उसी विश्वविद्यालय,जिसमे स्थित बैंक शाखा में मैं कार्यरत था ,के किसी विभाग में शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थी का था .राधू का कहना था कि भाई साहब इस बन्दे के बारे में पता करो .राधू के बात करने के अंदाज़ से ऐसे लग रहा था कि यदि सब कुछ ठीक ठाक हो तो तुरंत विवाह कर लिया जाये. और मैं पर्ची देख कर असमंजस में था कि क्या करूं.?
खैर मैं पर्ची के सहारे दूसरे दिन उस युवक को ढूँढने निकला और पाया कि वह तो मुश्किल से इक्कीस वर्ष का युवक और राधू सत्ताईस वर्ष की ,बिलकुल बेमेल ! राधू तो अच्छा खासा कमा रही है और इन महाशय के करियर का अभी कुछ पता नहीं ,कुछ सोचते सोचते ,बिना उस युवक से मिले ही मैं वापस आ गया और राधू को मैंने बता दिया कि यह युवक तुम्हारे कतई योग्य नहीं है ,इसको तुम भूल जाओ.राधू बेचारी बड़ी हताश सी वापस चली गयी.
इस बात को आज लगभग पैंतीस वर्ष बीत चुके हैं और मैं लगभग इस घटना को भूल ही गया था कि अचानक एक दिन पता चला कि राधू भी उसी शहर में रहती है जिसमे मैंने भी सेवा निवृत्ति के उपरांत अपना आशियाना बनाया है .पता ढूँढ़ते हुए उसके घर पत्नी सहित पंहुचा ,हाल चाल प्राप्त किया .अचानक से बहुत बूढी सी दिखने लगी थी और अभी तक कुंवारी थी.किसी स्नातकोत्तर महाविद्यालय की प्राध्यापिका के पद से सेवा निवृत्त हो कर इसी शहर में सेटल हो गयी थी.उसका आना जाना हमारे घर में शुरू हो गया था . वैसे भी इस शहर में उसका जानने वाला कोई नहीं था .
एक दिन राधू हमारे घर में आयी हुई थी और पत्नी के साथ उसकी गपशप चल रही थी ,कि पत्नी ने राधू से पूछा कि राधू तुम्हे कोई मिला ही नहीं या तुमने स्वयं विवाह नहीं किया ?इस पर राधू ने कुछ ना बोलकर मेरी ओर कातर द्रष्टि से देखा जैसे मैंने ही उसका विवाह नहीं होने दिया ,और उसकी आँखों से बरबस आंसूं गिरने लगे .उसके बाद राधू कभी भी हमारे घर नहीं आयी ,मेरे फोन करने पर भी कोई जवाब नहीं मिलता.
 “जब चला था तीर तब इतना पता ना चला ,.

 एहसास तब हुआ जब कमान देखी अपनों के हाथ में…!!

Sunday, July 19, 2015

आई एम् ए ब्रेक डांसर

आई एम् ए ब्रेक डांसर 

रोहित के पापा कई बार रोहित को शीशे के सामने अपनी भुजाओं को और उँगलियों को घुमाते हुए अपने पैरों को लय बद्ध ढंग से डांस करते हुए आजकल देख रहे थे .उनको लगता था की उनका बेटा पढाई लिखाई छोड़ कर डांस में मगन हो गया है लेकिन स्कूल की पैरेंट /टीचर मीटिंग में सदैव अच्छी रिपोर्ट मिलने के कारण वो बेटे को कुछ नहीं कहते थे.एक बार उन्होंने बेटे से पूछ ही लिया कि बेटे आजकल क्या नयी धुन सवार  हो गयी है? तो रोहित ने बताया कि ये ब्रेक डांस है.उसने पापा से पूछा कि क्या उन्होंने जावेद जाफरी को कभी डांस करते हुए देखा है ? पापा ने उत्तर दिया की हाँ देखा तो है उसको हड्डियों को तोड़ मरोड़ कर डांस करते हुए . रोहित ने बताया कि यही ब्रेक डांस है

एक दिन रोहित को उसके पापा ने बताया कि उसके कार्यालय में एक कल्चरल प्रोग्राम शीघ्र ही होने वाला है और सभी के परिवार के सदस्यों को भी भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है .निश्चित दिन /समय पर कार्यक्रम प्रारंभ हुआ . रोहित की छोटी बहन ने एक बहुत ही सुंदर इंग्लिश पोएम गाई ,अब बारी थी रोहित की ,उसने भी एक इंग्लिश सॉंग पर मून वाक एवं अन्य कई प्रकार के ब्रेक डांस प्रस्तुत किये .सभी को बहुत आनंद आया और विशेष कर वहां उपस्थित लड़कियों को .एक दो लड़कियां तो इतनी फैन हो गयी कि उन्होंने रोहित से उनको ब्रेक डांस सिखाने के लिए भी कहा परन्तु समय के आभाव में रोहित ने असमर्थता प्रकट कर दी .
उन्ही दिनों रोहित के दादाजी का मुज़फ्फरनगर से फोन आया की दशहरे पर वहां पर नुमाइश/मेला लगने वाला है और सबको मुज़फ्फरनगर आने को कहा .दशहरे की छुट्टियाँ भी पड़ रही थी अतः सब लोग मुज़फ्फरनगर पहुँच गए .दादा/दादी एवं परिवार के अन्य सदस्यों से मिलकर बहुत मजा आ रहा था. रोहित भी अपने हमउम्र कजिन्स से मिलकर बहुत खुश था .एक दिन परिवार के सभी सदस्य नुमाइश/मेला देखने पहुँच गए .वहां पहुँच कर तो मजा ही आ गया .तरह तरह की दुकाने /सामान/श्रगार सामग्री/सर्कस /विभिन्न प्रकार की मिठाईयां ,क्या नहीं था .वहां की चकाचौंध करने वाली प्रकाश व्यवस्था .देखते देखते ,चलते चलते एक पंडाल पर पहुंचे तो देखा वहां पर नृत्य प्रतियोगिता चल रही है ,सब लोग पंडाल के अंदर पहुँच कर सभी प्रतियोगियों द्वारा प्रस्तुत नृत्यों का आनंद उठाने लगे .अचानक से रोहित ने पापा से कहा कि वो भी इस प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता है .पापा ने उसे बहुत समझाया कि बेटा इस प्रतियोगिता के लिए तो पहले टेस्ट दिया जाता है और सफल अभ्यर्थियों को ही इसमें भाग लेने के लिए चुना जाता है ,अब इस समय कौन तुम्हे भाग लेने देगा. रोहित के बार बार जिद करने पर उसके पापा ने आयोजकों से बात की और बताया कि यह बच्चा लखनऊ का ब्रेक डांस चैंपियन है और इसके भाग लेने से उनकी प्रतियोगिता में चार चाँद ही लगेंगे .बहुत समझाने पर एवं रोहित के डांस का थोडा सा नमूना देखने के पश्चात रोहित को उस नृत्य प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु अनुमति मिल गयी .अब प्रश्न था कि डांस के लिए कोसट्यूम का प्रबंध और गाने के चयन का .इसका भी हल रोहित ने ढून्ढ निकाला .पास ही में खड़े युवक जो काला चश्मा लगाये खड़ा था ,उस से उसका चश्मा लिया और बैकग्राउंड में जाकर म्यूजिक मास्टर से पूछा की क्या उसके पास ‘हबीबी’ गाने का कैस्सेट है ?यह गाना उन दिनों वर्ष १९८९-९० में बहुत प्रचलित था . म्यूजिक मास्टर के हाँ बोलने पर रोहित की बाछें खिल गयी .उसका आत्मविश्वास देखने योग्य था ,उसने अपने पापा से कहा कि अब तो डांस ट्राफी वही जीत कर जाएगा.
एक से बढ़ कर एक नृत्यों की प्रस्तुति चल रही थी और एक बहुत ही सुंदर शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति तो उसकी एक कजिन भावना ने भी दी थी . रोहित के पापा इतने सुंदर सुंदर नृत्य देख कर भाव विभोर हो रहे थे और यह भी सोच रहे थे कि कहीं उनका बेटा डींगे तो नहीं हांक रहा ?
सबसे अंत में रोहित का नाम पुकारा गया और रोहित ने अपने ब्रेक डांस की बहुत शानदार प्रस्तुति दी और जैसे ही नृत्य समाप्त हुआ सभी दर्शकों ने खड़े हो कर अभिवादन किया एवं देर तक तालियाँ बजती रही. उसके मम्मी पापा के आँखों में भी हर्ष के आंसू निकल आये.अब आया परिणाम घोषित करने का समय , रोहित को आशानुसार प्रथम पुरूस्कार एवं शील्ड प्रदान की गयी .
जैसे ही पंडाल से बाहर निकले रोहित को लोगों ने घेर लिया कोई उसके ऑटोग्राफ ले रहा था ,कोई चूम रहा था .इतने में एक पुलिस का कोंस्टेबल आया ,उसने रोहित को गोद में उठाया और बोला भय्या मजा आ गया ,आप तो जूनियर जावेद जाफरी हो ,फिर उसने एक पचास का नोट निकाला और बोला कि  भय्या इस पे अपने सिग्नेचर कर दो ,कल को तो आप बहुत बड़े कलाकार बनने वाले हो ,पता नहीं कि लिफ्ट मिले ना मिले.


अब आया असली क्लाइमेक्स ! दूसरे दिन शहर के सभी लोकल समाचारपत्रों में हेड लाइन्स थी “लखनऊ के ब्रेक डांसर ने शहर के ब्रेक डांसरों को धूल चटाई .“सायंकाल तक कई लोकल समाचारपत्रों के कई पत्रकार रोहित का इंटरव्यू ले रहे थे और रोहित उस शहर का ‘ब्रेक डांस आइडल’ बन गया था .

Thursday, April 2, 2015

क्रिसमस गिफ्ट



दो वर्ष पूर्व हम अपने बेटे के पास गोवा में थे मेरी दोनों प्यारी सी पोतियाँ काव्या और किआरा सारे दिन हमारे आस पास मंडराती रहती और बाल सुलभ क्रीडाओं से हमारा मनोरंजन करती रहती .क्रिसमस पास आ रहा था और सारे छोटे बच्चों में एक ही कौतुहल था कि इस बार सैंटा क्या गिफ्ट देगा ?  काव्या थोड़ी बड़ी लगभग सात साल की हो गयी है और समझदार भी है और किआरा मात्र एक ही साल की अभी छोटी है . काव्या कैथोलिक स्कूल में पढ़ रही थी और जाहिर है कि उसके स्कूल में क्रिसमस को लेकर काफी तैय्यारियाँ चल रही थीं .रोज स्कूल से लौटने के बाद एक ही बात पर चर्चा होती कि सैंटा इस बार क्रिसमस की पूर्व रात्रि में मौजों में क्या गिफ्ट रख कर जाएगा.माता पिता भी समझाते कि जो बच्चे पढ़ाई में अच्छे होते हैं उनके लिए सैंटा बड़ा गिफ्ट रखता है और जो लोग पढ़ते नहीं हैं और माँ बाप का कहना नहीं मानते ,उनके लिए तो सैंटा गिफ्ट ही नहीं रखता है .आजकल काव्या अच्छे बड़े गिफ्ट के चक्कर में खूब पढाई भी कर रही थी और माँ बाप का कहना भी अच्छे से मान रही थी . आजकल उसको खाना खिलाने के लिए भी विशेष प्रयास नहीं करने पड़ रहे थे . काव्या की कल्पना में यह भी आ रहा था कि इतनी छोटी जुराब में आखिर कितना बड़ा गिफ्ट आयेगा?एक दिन उस से यह पूछने पर कि आखिर वो सैंटा से क्या गिफ्ट चाहती है ,उसने बताया कि उसे “बार्बी स्ट्रोली” चाहिए(यह एक प्रकार का छोटा सूटकेस होता है जिसमे विभिन्न प्रकार ,पहनावे ,परिवेश वाली कई बार्बी डॉल के अतिरिक्त उनसे सम्बंधित सभी आभूषण ,सौदर्य सामग्री एवं वेशभूषाएं करीने से रखी होती हैं )यह आइटम आजकल अभिजात्य वर्ग की बालिकाओं में काफी प्रचलित भी है और काफी मंहगा भी.शायद अपनी किसी सहेली के पास देखा होगा .बार बार अपनी दादी से पूछती कि सैंटा उसका गिफ्ट लाएगा कि नहीं ?दादी द्वारा अनभिज्ञता प्रकट करने पर थोड़ी उदास हो जाती .बेटे ,बहू से बात पूछने पर कि यदि इसको यह गिफ्ट ना मिला तो क्या होगा ? इसका तो दिल टूट जाएगा .तरह तरह की कहानियाँ चल रही थी कि सैंटा तो अपनी स्लेज गाडी में सारी दुनिया के बच्चों के लिए गिफ्ट ले कर चलता है और सब के लिए बार्बी स्ट्रोली तो ला नहीं सकता ,और बार्बी स्ट्रोली तो जुराब में आ ही नहीं सकती  आदि अदि .एक दिन काव्या अपनी दादी से बात कर रही थी कि सैंटा को तो गॉड भेजते हैं और गॉड को हर बच्चे के दिल की बात पता होती है इसलिए मेरी बार्बी स्ट्रोली तो आनी ही चाहिए.अंत में जब कौतुहल बहुत बढ़ गया और कहीं से भी उसकी जिज्ञासा का मन मुताबिक उत्तर नहीं मिल पा रहा था ,तो उसके मन में एक उपाय आया और उसने सैंटा को एक हरी स्याही से बहुत सजाकर पूरे पेज में  एक पत्र लिखा जो कि निम्नवत था  -
“can you give me Barbie Strolly,Dear Santa” from Kavya
Santa pls can you give me ,yes or no

अब चौबीस दिसम्बर आ गया था और उसकी आतुरता अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच चुकी थी. घर के सभी लोग इस असमंजस में थे इसका ऐसा क्या हल निकाला जाए कि जिस से कि उसे लगे कि सैंटा को पता था कि काव्या को क्या चाहिए और ऐसा गिफ्ट जिसे पाकर वो खुश भी हो जाए .आखिर उसकी दादी ने उस से पूछ ही लिया की यदि सैंटा बार्बी स्ट्रोली ना ला पाया तो कोई और गिफ्ट भी चल सकता है ?उसे यह भी बताया गया की उसके दादू का सैंटा दोस्त है और दादू के कहने पर वो कुछ ना कुछ तो लायेगा ही .बहुत सोचने के बाद उसने बताया कि यदि बार्बी स्ट्रोली नहीं तो “बार्बी शैम्पू” चल सकता है .यह पता चलने पर कि सैंटा दादू का दोस्त है ,उसको यह आभास हो गया कि कुछ ना कुछ तो गिफ्ट आयेगा ही.खैर! शाम को मैं पत्नी के साथ पणजी जाकर बार्बी शैम्पू ले आया .हाँ एक बात तो बताना ही भूल गया कि  काव्या ने जुराब की जगह एक बड़ा सा बैग लेकर उसमे अपनी चिट्ठी रखकर बहुत सहेज कर रात को बालकनी में रख दिया .उसको लगा कि उसकी बार्बी स्ट्रोली तो जुराब में आएगी नहीं .रात को लगभग बारह बज चुके थे और काव्या की आँखों में नींद का कोई नामो निशाँ नहीं था.
कौतुहल वश हर दस मिनट बाद जा कर बैग को देख आती .ऐसा लगता था जैसे कोई अनाडी बीज बो कर पानी देकर हर घंटे बीज निकाल निकाल कर देख रहा हो कि पेड़ उगा कि नहीं ?
यह एक ऐसी स्थिति थी जिसमे सभी लोग उसके बाल कौतुहल को एन्जॉय भी कर रहे थे और इसके पटाक्षेप को सोच कर परेशान भी हो रहे थे . किसी प्रकार उसे यह कह कर सुलाया गया कि सैंटा बच्चों के सोने के बाद ही गिफ्ट रखता है .उसके बैग से चिट्ठी निकाल कर बार्बी शैम्पू रख दिया गया .
सुबह सवेरे उठते ही वो बालकनी की ओर भागी और अपना बैग चेक किया तो उसे लगा कि कुछ तो बैग में है ,देखने पर पता चला कि बार्बी शैम्पू ! अब तो उसकी ख़ुशी का पारावार ना था . ख़ुशी के मारे उसके मुंह से किलकारियां निकल रही थी. उसको विश्वास हो गया था कि गॉड ने उसकी पहली नहीं तो दूसरी इच्छा पूरी कर दी है.अब वो भाग भाग कर अपनी सहेलियों को अपना गिफ्ट दिखा रही थी और उसकी सहेलियां भी उसके गिफ्ट को इर्ष्या की दृष्टि से देख रही थी.
इस वर्ष दीपावली पर बेटा और उसका परिवार लखनऊ आया हुआ था .काव्या पहले से ज्यादा समझदार हो गयी थी .पता नहीं कैसे मेरे कागजों में उसे दो वर्ष पूर्व उसकी सैंटा के नाम की चिट्ठी उसके हाथ लग गयी और उस चिट्ठी को लेकर मेरे पास आयी और कहने लगी “तो आप ही मेरे सैंटा थे?”मैं धीरे से मुस्कुरा दिया और बचपन में पढ़ी श्री राहुल शर्मा की एक कविता याद आ गयी –
चलो फिर ढूंढ लें हम !उसी मासूम बचपन को !
उन्ही मासूम खुशियों को !उन्ही रंगीन लम्हों को !
जहाँ  गम का पता  था !जहां बस मुस्कुराहट थी !
बहारें ही बहारें थी !
चलो फिर ढूंढ लें हम !उसी मासूम बचपन को !
जब सावन बरसता था !तो उस कागज की कश्ती को !
बनाना और डूबा देना !बहुत अच्छा सा लगता था !

और इस दुनिया का हर चेहरा !बहुत सच्चा सा लगता था !

Tuesday, March 31, 2015

सोच

                 
श्याम किसी मित्र को रेलवे स्टेशन छोड़ कर वापस आ रहा था तभी उसे रास्ते में याद आया की उनके अभिन्न मित्र श्री मेहता साहब का घर भी कहीं आस पास ही है ,उसने सोचा चलो बहुत दिन हो गए हैं ,आज उनसे भी मिल लिया जाय .श्री मेहता को श्याम अंकल कह कर ही पुकारता था क्यों कि श्री मेहता उसके अभिन्न मित्र अनिल के ससुर थे .श्री मेहता इतने व्यवहार कुशल एवं इतने स्नेही थे कि देहरादून से लखनऊ आने पर श्याम को ऐसा अनुभव हुआ कि जैसे उसके स्वयं के पिता उसे मिल गए हों .जब भी श्याम उनकी दूकान पर जाता तो कभी मौसमी का जूस या गन्ने का रस पिलवाये बिना आने ही नहीं देते थे.मेहता साहब भगवान् शंकर के अनन्य भक्त थे ,हर सोमवार को व्रत रखते और उनके लिए शिवरात्रि वर्ष का सबसे बड़ा पर्व होता था .
आज श्याम पहली बार उनके घर जा रहा था .जैसे ही श्याम ने मेहता साहब के घर पर घटी बजाई ,उनकी पोती ने दरवाजा खोल कर नाम पूछा ,और जैसे ही मेहता साहब ने श्याम का नाम सुना ,लपक कर आये और बहुत गर्मजोशी से गले मिले .इतने खुश ,गदगद हुए ,उनकी प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं थी. सभी बेटों,बहुओं,पोते एवं पोतियों से श्याम का परिचय करवाया और फिर अपनी बड़ी बहु को आवाज़ दे कर आदेश दिया की आज श्याम बेटा घर पर पहली बार आया है आज मटन बिरयानी ,चिकन बनाओ और बेटे को कहा अन्दर अलमारी से स्काच की बोतल निकाल कर लाओ ,आज श्याम के साथ बैठ कर पी जायगी .श्याम यह सब देख कर थोडा असहज हो रहा था .मन ही मन सोच रहा था कहाँ फस गया ?परन्तु मेहता साहब को आदरवश कुछ कहने का साहस भी नहीं कर पा रहा था.लगभग दो घंटे तक श्याम ने मेहता साहब की मेहमाननवाजी का लुत्फ़ उठाया .आज मेहता साहब बहुत प्रसन्न थे .जब श्याम चलने को हुआ तो मेहता साहब ने पूछा “आप किधर से जाओगे ?” श्याम ने प्रत्युत्तर में पुछा “क्यों ,बताईये ?”इस पर मेहता साहब ने कहा ,जरा मुझे मंदिर तक छोड़ देना ,भगवान् के दर्शन करने हैं .श्याम को काटो तो खून नहीं .उसने मेहता साहब से पूछा “मांस ,मदिरा के सेवन के उपरान्त मंदिर ?”
उन्होंने श्याम को घूर कर देखा और जो उत्तर दिया वह आज भी श्याम के मस्तिष्क पटल पर अंकित है ‘उनका उत्तर था “श्याम! जब ईश्वर रोज सूखी दाल रोटी खिला रहा था तो हम उनका आभार प्रकट कर रहे थे ,और आज जब उन्होंने तुम्हे हमसे मिलवाया ,इतना अच्छा भोजन करवाया और स्काच भी पिलवायी ,तो क्या आज हम ईश्वर का आभार नहीं प्रकट करेगे ?आज तो विशेष आभार प्रकट करेगे “

एक ही पल में उनके उत्तर ने श्याम की धर्म,पूजा पाठ ,कर्म कांड ,पवित्रता सम्बन्धी सारी पोंगापंथी वर्जनाएं तोड़ कर रख दी .

‘ लियो’

                          ‘ लियो’

एक विडिओ देख रहा था ,जिसमे कुत्ते अपने मालिकों को अपने विभिन्न करतबों से जगा रहे थे.इस पर मुझे भी याद आया कि हमारे पास भी एक जर्मन स्पिट्ज कुत्ता था जिसका नाम हमने लियो रखा था .बहुत ही संवेदन शील था वो.ऑफिस से लौटते समय जब मेरा स्कूटर घर से लगभग एक किलोमीटर होता था तो उसे मेरे आने का आभास हो जाता था और जब मैं घर पहुंचता तो वो जोर जोर से पूंछ हिलाकर,मुझसे उछल उछल कर लिपट कर अपना प्यार जताता .जब कभी भी घर के सभी सदस्यों को उसे छोड़ कर जाना होता तो वह बहुत रोता और वापस आने पर बहुत नाराज़ होता. फिर उसको मनाने का हमारे पास एक ही तरीका होता ,उसके प्रिय व्यंजन आमलेट और पापड़ ,वही उसे दिए जाते तब वह मानता. वो कभी कभी तो बच्चों के साथ स्कूल की क्लास में भी चला जाता .उस से जुडी हुई जीवन की अनेक घटनाएं /अनुभव हैं जिन्हें हम आज भी याद करते हैं.उस से जुडी हुई एक घटना याद आ रही है कि मेरी पत्नी को स्नोफिलिया हो गया था और उसे सांस लेने में बहुत समस्या हो रही थी .बेचारी रात रात भर जगती रहती . कई डाक्टरों को दिखाया ,बहुत फर्क नहीं पड़ रहा था .मेरी नींद में कोई बाधा ना पड़े इस लिए वो कभी कभी दुसरे बेडरूम में सोने चली जाती थी .एक रात की बात है कि लियो अचानक रात को मेरी चादर खीच कर मुझे जगाने का प्रयास कर रहा था और जब तक उसने मुझे जगा नहीं लिया तब तक उसने दम नहीं लिया .मैं जब उठ कर बैठ गया तो वो भौंक भौंक कर दूसरे कमरे की ओर इशारा कर रहा था . इस बीच मैंने देखा की पत्नी अपने बेड पर नहीं है तो मैं दूसरे कमरे की ओर भागा और देखा की पत्नी को सांस नहीं आ रही है और वो रोये जा रही थी .तुरंत किसी प्रकार पत्नी को रात को ही होस्पिटलाइज़ किया और किसी प्रकार उसकी जान बचाई .आज मैं सोचता हूँ कि शायद उस दिन लियो ने मुझे जगाया ना होता ना जाने क्या अनर्थ हो जाता .इस बारे में मैं एक ही बात कह सकता हूँ .

“वो यहाँ पर हमारी जिंदगी का शायद एक हिस्सा था ,लेकिन हम तो उसकी पूरी जिंदगी ही थे “(He might only be here for a part of our life but for him we were his whole life)

रवीन्द्र नाथ अरोड़ा